खुद बिगड़े हो तुम जो अब तो
बच्चों को क्या सिखलाओगे,
खुद जो करने लगे नशा हो
उनको कैसे बचाओगे?
कोई भी माँ बाप अपने बच्चों
के लिए आदर्श होते हैं, उनको देख कर ही बच्चे जीवन की पहली पाठशाला शुरू करते हैं।
माँ बाप के क्रिया कलापों से बच्चे अपने भविष्य की सीख लेते हैं, किन्तु जब माँ बाप
ही बच्चों के सामने नशे का सेवन करने लगते हैं तो बच्चे भी उनको देख कर नशे की तरफ
अग्रसर होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। कई माँ तो गर्भ में शिशु होने के उपरांत
भी पौष्टिक आहार की जगह गुटखा, तम्बाकू इत्यादि का सेवन करती हैं, तो इस प्रकार तो
जन्म से पहले ही शिशुओं की रगो में नशा समाता जा रहा है।
आज
नशा हमारे समाज के लिए एक विकराल समस्या बनता जा रहा है, हम अपने बचपन से सुनते आ रहे
हैं कि, नशा एक बुरी लात है। और सब कुछ सुनने समझने के बाद भी आदमी स्वयं को इस जाल
में फंसने से नहीं रोक पाता, पता नहीं ऐसा क्या है इस नशे मे? ये एक ऐसा दीमक है जो
समाज को अंदर ही अंदर कमज़ोर कर रहा है। एक 25-30 वर्ष का युवा सुबह होते ही अपनी दिनचर्या
गुटखा, सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि से शुरू करता है, वह नित्य क्रियाएँ बाद में करता है,
नशे का सेवन पहले करता है। सरकार समाज की हितैषी होती है, जो समय समय पर समाचार पत्रों,
पत्रिकाओं, सोशल मीडिया, टी वी चैनलों, रेडियो इत्यादि के माध्यम से नशे से होने वाले
दुष्परिणामों से जनता को जागरूक करती है। आप टी वी पर कोई फ़िल्म देखें जैसे ही कोई
व्यक्ति धूम्रपान करता दिखता है, तुरंत ही नीचे छोटे अक्षरों में लिख कर आ जाता है,
"धूम्रपान स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है, इस से कर्क(कैंसर) रोग होता है".
यह सब क्यों है, सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए, लेकिन उसके बाद भी हम नहीं चेतते हैं,
शराब की बोतलों, गुटखे के पैकेटों, सिगरेट, बीड़ी, इत्यादि पर लिखी चेतावनी को नज़र अंदाज़
करके हम इन नशा संबंशी सामग्री को एक बार में गटक जाते हैं।
नशा
घर के खुशियों भरे माहौल में भी आग लगा देता है, बड़े बड़े घर नशे की आग में तिनके की
तरह जल जाते हैं। नशा करने के बाद व्यक्ति का अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण समाप्त हो
जाता है, और जिसके कारण वह घर में गाली, गलौज, मार पीट इत्यादि करने लगता है, जिसका
परिवार पर बुरा असर पड़ता है, विशेष रूप से बच्चों पर। बच्चे तनाव में रहने लागतें हैं,
जिसके कारण उनकी शिक्षा, एवं आचार व्यवहार
पर बुरा प्रभाव पड़ता है, और इन सब कारणों के चलते उनका भविष्य भी गर्त में चला जाता
है। महिलाएं तनाव में रहती है, परिवार की शांति भंग हो जाती है और कई बार नशे से प्रभावित
हो कर वे आत्महत्या तक करने का निर्णय ले लेती हैं।
नशे
का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव स्वस्थ्य पर पड़ता है, आज कल देखा गया है की कम आयु में ही बच्चों,
नौजवानो, पुरुषों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है जिसका इलाज़ काफी महंगा भी
है, और समय से इलाज न मिल पाने के कारण एवं धन के आभाव में परिवार अपना एक महत्वपूर्ण
सदस्य खो देता है, जिसका दंश वह परिवार जीवन भर झेलता है। आखिर ऐसा क्या ज़रूरी है इस
नशे में जो आपके व आपके परिवार की खुशियों में आग लगा दे। विश्वकर्मा समाज भी इस से
अछूता नहीं है। मेरा निवेदन अपने समाज व अन्य समाज के सभी उन लोगों से है, जो किसी
भी प्रकार का नाश करते हैं, मेरी उनसे हाँथ जोड़ कर विनती है, की कृपया नशे को आज से
ही तिलांजलि दें, एवं खुशियों को अपनाये, एवं बच्चों को अच्छी शिक्षा दे, और उनको देश
की सेवा के लिए एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करें। मेरा लेख पढ़ने के बाद यदि
एक वयक्ति भी नशा छोड़ता है, तो मैं समझूँगा कि मेरा ये लेख लिखना सार्थक रहा।
धन्यवाद्
आपका:
हिमांशु विश्वकर्मा
सहायक प्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
मुख्या शाखा, गोरखपुर
मोब. 9451149914
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