Friday, January 26, 2018

मैं राम हूँ- राम अवतार शर्मा


मैं राम हूँ
सबके लिये सुख-सिंधु करूणाधाम ललित ललाम हूँं।
पर अन्ततः क्षण क्षण खड़ा साक्षात विधि के वाम ह।ूँ
मैं हंस कुल का दीप सुख सौभाग्य शुभ किंचित न पाया।
अनवरत पीछा किए थी द्वन्द्व की दुर्भाग्य छाया।
राजकुल का द्वेष, दम्भ अजेय मुझ पर आक्रमणरत,
साथ अपने आत्मबल था और पौरूष थ सवाया।
किन्तु में साग्रह सतत संघर्षरत अविराम हूँ।
में जनक का प्रण जननि का शब्द शब्द निभा रहा हूँ।
कोमलांगी स्वप्रिया के संग विपिन सिधा रहा हूँ।
वीतराग संतजन के पूज्य चरण पखार नित-नित
धैर्य, संवल, साधना से आत्मकोष बढ़ा रहा हूँ।
पत्थरों से जूझती सरि की लहर उद्दाम हूँ।
मैं भरत का प्रिय, विमाता कैकेई उर क्लेश सुन लो।
वृत्ति से निस्पृह, न लिप्सा राज सुख की लेश सुन लो।
मैं प्रभारंजक सिया परित्याग कर दी थी परिक्षा।
और फिर औचित्यहित श्रद्धा पुरूष का वेश सुन लो।
तीक्ष्ण कांटो की चुभन में भी चला निष्काम हूँ।
इन्द्रजित, त्रिसरादि, रावण बालि जैसे दुष्ट मारे।
बेर मीठे दीन दलिता भीलनी के घर जुठारे।
एक दिन क्रूरा नियति का खेल यों भी देख पाया।
सामने मेरे समर सन्नद्ध मेरे ही दुलारे।
अवतरण सरयू नदी में कर गया निज धाम हूँ।
-राम अवतार शर्मा इन्दु

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