Monday, January 29, 2018

सद्ग्रंथों का महत्व- तुलसी राम शर्मा ( सेशन जज से. नि.)


इस भूमण्डल (पृथ्वीलोक) पर हमारा देश भारत अपना अत्यंत विशिष्ट अलौकिक स्थान रखता आया है। मानव संस्कृति का यह सर्वोच्च केन्द्र रहा है। आध्यत्मिक ज्ञान की दृष्टि से हमारे इस भूखण्ड पर सर्वप्रथम ज्ञान का सूर्योदय हुआ और सदैव जगतगुरू के पद पर आसीन रहा। मानव सभ्यता के विकास मे हमारे देश से ही अन्य देशों में सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार हुआ।
बहुत समय पूर्व हमारा क्षेत्र जम्बू द्वीप के नाम से विख्यात था। फिर उसे आर्यावृत के नाम से पुकारा जाने लगा। जब ब्रह्मऋषियों में महान ऋषभ देव जी के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र भरत का इस पृथ्वी पर एक छत्र साम्राज्य रहा तब हमारा देश भारत वर्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ और आज तक वही नाम हम अपनाए हुए हैं।
हमारे आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग साढे चार अरब वर्षों से हमारा यह ग्रह (पृथ्वी लोक) सूर्य भगवान की परिक्रमा करते आ रहा है। स्वाभाविक ही प्रतीत होता है कि यहाँ जीव सृष्टि अत्यंत दीर्घ काल से विद्यमान है। हमारे लिए अनुमान लगाना भी कठिन है कि मानव कब से धरती माता पर विचरण कर रहा है। पाश्चात्य जगत इस विषय पर लगभग मूक साधे हुए है। लेकिन हमारे प्रचीन ग्नन्थों से तो ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि रचना से ही मानव का मृत्युलोक में प्राकट्य सिद्ध होता है। ब्रह्मा जी ने सर्व प्रथम मानसी रचना की और सनकादि ऋषियों को उत्पन्न किया । वे मानव सृष्टि का विस्तार नहीं कर पाए। वे तो ब्रह्म ज्ञान में ही लीन रहने लगे। तब ब्रह्म देव ने मैथुनी सृष्टि की उपाय सोचा और मनु व शतरूपा को प्रकट किया। उन दोनों के संयोग से इस भूमण्डल पर विस्तार हुआ और आज हम देख रहे हैं मानव ने पृथ्वी पर कहाँ तक प्रगति करते हुए इस ग्रह को लबालब भर दिया है।
यह सत्य है अनादिकाल से मानव सृष्टि का विकास इस पृथ्वी लोक पर होता चला आ रहा है। कभी उद्भव तो कभी ह्रास। यह प्रक्रिया चली आ रही है। माव सभ्यता को सबसे भीषण आघात तब पहुंचा जब लगभग 5000 वर्ष पूर्व इस पृथ्वी का भार उतारने के उद्देश्य से भगवान कृष्ण की इच्छा से कुरूक्षेत्र के मैदान पर महाभारत नामक सर्व विनाशकारी महायुद्ध सम्पादित हुआ। इस महा युद्ध में 18 अक्षोहिणी सेनाओं ने भाग लिया, जिसमें 11 अक्षोहिणी सेनाएं कौरवों की थी व 7 अक्षोहिणी सेनाएं पाण्डवों के पक्ष में सम्मिलित हुई। इस भूमण्डल के सभी राजा-महाराजा अपने अपने राष्ट्रों की सेनाएं लेकर महाभारत में उपस्थित हुए और उन सबका खात्मा हो गया। इस महायुद्ध में तत्कालीन संस्कृति का ह्रास हो गया। सर्वत्र अराजकता फैल गयी। न राजा रहे और न प्रजा पालन की सुचारू व्यवस्था। एक प्रकार से सर्वत्र सांस्कृतिक अंधकार छा गया और वैदिक सभ्यता का अंत सा हो गया। चोरों-लुटेरों ने राज्य सत्ता पर अपना अधिपत्य जमा लिया और प्रजा अधोगति में धकेल दी गई। न वर्णश्रम की प्रणाली बच पाई और न सामाजिक कर्म व्यवस्था ही।
इस सोचनीय स्थिति में सभ्यता की किरण पुनः प्रस्फुटित हुई जब 2500 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध का इस मुल्क में पदार्पण हुआ और उनके द्वारा बौद्ध धर्म की चहूं और स्थापना हो पाई। मानव समाज को उनके द्वारा अहिंसा का पाठ पढ़ाया गया। उनके अनवरत प्रयासों के फल स्वरूप बौद्ध धर्म आसपास के सभी मुल्कों में श्री लंका, म्यांमार, मलेशिया, इण्डोनेशिया, जापान होते हुए चीन तक पहुंच गया और भारत वर्ष पुनः जगतगुरू के सम्मानित पद पर आसीन हो गया।
लगभग 1000-1500 वर्ष तक बौद्ध धर्म का वर्चस्व बना रहा, परन्तु उसमें विकृतियां पनपने लगीं और अद्योगति के कगार पर खडा हो गया। ऐसे समय में दक्षिण से जगदगुरू शंकराचार्य का प्राकट्य हुआ, जिन्होंने 32-33 की अल्प आयु में बौद्ध धर्म को उखाड़ फैंका और सनातन धर्म की भारत में पुनः स्थापना कर दी।
भारत वर्ष में सनातन धर्म की पुनः स्थापना तो हो गई मगर राज्य व्यवस्था दयनीय स्थिती में थी। देश का कोई सम्राट नहीं था। छोटे-बडे अनेक राजा राज्य करते थे और उनमें भी आपसी वैमनस्य रहता था। एक जुट होकर कोई राज्य व्यवस्था नहीं थी। इसका ज्वलंत उदाहरण अजमेर के राज्य और कन्नौज के राज्यों की बीच मन-मुटाव देखने में आता है। कन्नौज के राजा जयचंद ने बार-बार मुसलमान बादशाह मोहम्मद गोरी को आमंत्रित किया कि वह अपनी सेना लेकर आये और अपने प्रतिद्वंदी के राजा पृथ्वीराज चैहान को युद्ध में पराजित करे। राजाओं के बीच दुर्मति के फलस्वरूप मुसलमानों ने शनै- शनै सारे भारत वर्ष पर अपना शासन स्थापित कर लिया और हिन्दु जनता का बहुत बडे पैमाने पर इस्लामीकरण होने लगा। हमारा देश लगभग एक हजार वर्षों तक मुसलमान बादशाहों  के अधीन रहा और फिर उनमें अव्यवस्था फैल जाने से अंग्रेजों ने इस पर अधिपत्य कर लिया। उन्होंने भी लगभग 200-250 वर्षो तक शासन किया और शिक्षा द्वारा यहाँ की संस्कृति को ही बदल डाला। हम हमारी प्राचीन संस्कृति को जड़ से ही समाप्त कर चुके हैं और पाश्चात्य सभ्यता के गुलाम बन बैठे ।
उपरोक्त वृतांत का तात्पर्य केवल इतना बताना मात्र है कि किस प्रकार हमारा मानव समाज अपनी सर्वोत्तम आध्यत्मिक संस्कृति से विलग हो एक नकली जीवन शैली के पाश मे आ बंधा है। क्या हमारे उन महान ऋषि-मुनि, महर्षि-ब्रह्मऋर्षियों द्वारा उत्कृष्ट तपस्या से प्राप्त मानव उत्थान की वह शैली अब निरर्थक हो गई? जब तक हम हमारे महान मनीषियों द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को नहीं अपनाऐंगे, इस आधुनिक भोग-विलास की संस्कृति से पीछा कदापि नहीं छुडा पाएंगे और न भूमण्डल को विशाल जन समुदाय की जीवन की सही राह दिखाने में सफल हो सकेंगे।
हमारी प्रचीन  संस्कृति से जुडने के लिए हमारे लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम हमारे बचे-कुचे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करें। हम अपने दैनिक कामकाज के दौरान कुछ समय स्वाध्याय के लिए अवश्य सुनिश्चित करें। जो समय हम टी.वी. सीरीयल इत्यादि देखने में व्यर्थ में प्रतिदिन खोते रहते हैं, उसमें से कुछ क्षण हमारी उच्च कोटि की संस्कृति का अवलोकन में तो लगावें। आज भी जो प्राचीन ग्रंथ हमें उपलब्ध हैं, उनमें वह अमूल्य आध्यात्मिक ज्ञान भरा पडा है, जिससे हम अपने मानव जीवन का उत्कृष्ट फल प्राप्त कर सकते हैं। उनमें से कुछ ग्रंथों का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत करना प्रासंगिक होगा।
1. श्रीमद्भवाल्मीकी रामायण रू यह सुप्रसिद्ध ग्रंथ अत्यंत प्राचीन त्रैतायुग कालीन हमें बडे भाग्य से उपलब्ध है। इसमें भगवान श्री राम के अवतार की संपूर्ण कथा है। त्रैता युग में हमारी कैसी सभ्यता थी, मानव समाज का कैसा आचरण था और भगवान राम ने मानव मात्र को श्रेष्ठ जीवन जीने का कैसा सुन्दर उपदेश दिया। मानव जीवन की सर्वोत्तम शिक्षाप्रद है। महर्षि बाल्मिकी श्री राम के अवतार के समकालीन थे और इस ग्रंथ में उस समय की सारी घटनाओं की अक्षरशः बड़ा चित्ताकर्षक चित्रण मिलता है।
2. महाभारत रू महर्षि वेदव्यास द्वारा विरचित यह ग्रंथ द्वापर युग के अन्तिम वर्षों लगभग 5000 वर्ष पुराना है। उस काल में कौरव-पाण्डव के मध्य भीषण युद्घ हुआ था। उसका विशद वर्णन इस ग्रंथ में हमें प्राप्त होता है, साथ ही उस काल में राजकीय-सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था कैसी थी, मानव समाज की जीवन शैली कैसी थी। इन बातों का लोमहर्षक वर्णन इस ग्रंथ में भरा पडा है। यह ग्रंथ बडा रोचक एवं ज्ञान वर्धक है। इसका स्वाध्याय बडा हितकारी सिद्ध होगा।
3. श्रीमद्भगवद्गीता रू आध्यात्मिक ज्ञान का यह सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है और सारे विश्व में इसकी मान्यता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विकट समय में जबकि दोनो ओर की सेनाएं कुरूक्षेत्र की रणभूमि में युद्ध में प्रवृत होने को तैयार थी, उसके विषाद को दूर करने हेतु जो शिक्षा दी-प्रवचन किया वह मानव मात्र को लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। हमारा हिन्दु परिवार इस ग्रंथ को स्वाध्याय हेतु अवश्य अपने घर में रखे।
4. श्रीमद्भागवत (महापुराण) रू यह सर्व श्रेष्ठ ग्रंथ भी महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित है। इसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का बड़ा ही राचक वर्णन है। साथ ही इसमें आध्यात्मिक ज्ञान तो भरा पडा है। हमारी प्रचीन संस्कृति को अत्यंत विश्द रूपेण दर्शाया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अद्वितीय है। इसमें सृष्टि की रचना व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति व लय के संबंध में विशद वर्णन है। हमारे प्रचीन ऋषि-मुनियों ने आध्यात्मिक क्षेत्र में कितनी प्रगति की थी, इसमें सूक्ष्मतम उल्लेख हुआ है।
5. रामचरितमानस रू  गोस्वामी तुलसीदास जी कृत आधुनिक युग का यह अनपुम ग्रंथ है। हर भारतवासी को इसे घर में रखना चाहिए और सपरिवार इसका पठन-पाठन करना चाहिए। बालकों में अच्छे संस्कार स्थापित करने में ऐसे ग्रंथों का बडा महत्व है और परिवारिक जीवन में सुख-शांति हेतु इसका स्वाध्याय परम आवश्यक है। वैसे यह ग्रंथ वाल्मिकी रामायण पर आधारित है मगर इसमें गोस्वामी जी ने भक्तियोग का जो पुट दिया है वह अनुकरणीय है।
6. नाभा जी विरचित भक्तमाल रू  यह भी हमारे आध्यात्मिक भण्डार का अद्वितीय ग्रंथ है और आधुनिक काल का है। ये दोनो ग्नंथ लगभग 400 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुए और हिन्दु समाज में प्रभु भक्ति रस का संचार करने में अद्वितीय स्थान रखे हुए विद्यमान है।

उपरोक्त ग्रंथ प्रत्येक हिन्दु के घर में शोभा पाना चाहिए। इनके पठन-पाठन से सारा परिवार लाभान्वित होगा और सात्विक जीवन परिपुष्ट होकर सुख-शान्ति का प्रसार होगा। बगैर आध्यत्मिक पुट में मानव जीवन का वास्तविक लाभ प्राप्त करना कठिन है। वर्तमान समय की भोग-विलास की संस्कृति ने मानवता  का जितना नुकसान कर डाला है वैसा तो कई सदियों  से इस धरा धाम पर नहीं हुआ। हम आशा करते हैं हमारा समाज इन ग्रंथों के स्वाध्याय द्वारा अपने जीवन को संमार्ग पर स्थापित करने में ईश कृपा से सफल होगा।
- तुलसी राम शर्मा ( सेशन जज से. नि.)
जयपुर, राज. फोन.-0141-2706129

No comments:

Post a Comment