Saturday, March 3, 2018

विश्वकर्मा एकीकरण अभियान की ओर से समस्त देशवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ


संघर्ष ही जीवन है

भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. बाबा साहव भीमराव आम्वेडकर ने समाज के शोषित, पीडित, उपोक्षित और वंचित समाज के उत्थान हेतु एक नारा दिया था शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करों। इस नारे को आत्मसात करने के बाद ही आज वंचित समाज की पहचान बन सकी है। हालांकि यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है इसमें यदि शिथिलता बरती गई तो वंचित समाज दो कदम आगे बढने की बजाय चार कदम पीछे खिसक जायेगा।
विश्वकर्मा समाज की लोगों की लिए डा. भीमराव आम्वेडकर द्वारा दिया गया यह मंत्र संजीवनी साबित हो सकता है बशर्ते हम उसका अनुसरण करे सकें। क्योंकि गौरवशाली अतीत वाला विश्वकर्मा समाज संख्याबल और बुद्धिबल तथा बाहुबल में सक्षम होते हुए भी आजादी के सत्तर वर्षों के बाद राजनीतिक रूप से अपनी पहचान नहीं बना सका। कारण समाज के बुद्धिजीवी कहे जाने वाले नेतागण अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। लक्ष्य सबका एक है रास्ते अलग-अलग हैं। काशः हमारे बुद्धिजीवी नेतागण व्यक्तिगत महत्वकांक्षा और अहम को त्याग कर संगठित होकर संघर्ष करें तो निश्चित ही हम अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे। डा. आम्वेडकर ने संगठित होने और संघर्ष  करने से पहले शिक्षित होने पर जोर दिया। क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही संगठित होकर एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर सकता है और अपने समाज के उत्थान में एक सहायक बन सकता है। 
देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर ही विश्वकर्मा समाज के शिक्षित बन्धु विश्वकर्मा एकीकरण अभियान से जुड़े और अपने परिवार से एक सदस्य को अवश्य जोडें तभी हमारा समाज संगठित होकर संघर्ष कर सकेगा और संख्या बल के अनुरूप सत्ता मे भागीदारी हासिल कर सकेगा।