हमारा देश यहाँ की पावन संस्कृति की दृष्टि से अन्य सभी देशों से अलग पहचान रखता है। यहाँ संस्कृति और श्रेष्ठ परंपराओं की दुहाई दी जाती रही है। भारत ऐसा देश है, जिसको भारत माँ अर्थात् मातृभूमि के रूप मे मानते हैं, क्योंकि प्राचीन काल से जन्मस्थली भी यही रही है और कर्म स्थली भी यही रही है। हमारे देश के शास्त्रों में, पुराणों, ग्रंथों आदि में माँ शब्द का इतना महत्व बताया गया है, जिसकी सम्पूर्ण व्याख्या करना इतना आसान नहीं है। माँ दुर्गा, माँ शारदे, माँ लक्ष्मी, माँ गंगा और न जाने कितनी ही दैवीय शक्तीयों का माँ के रूप में इस धरती पर अवतरण हुआ। युगों-युगों से इनका आश्रय मिला। इनकी सद्वाणीयों , लीलाओं से प्रशस्त मार्ग का दर्शन मिला। माँ ममता की मूरत, माँ शब्द को सुनने से ही विशेष अनुभूति , माँ शब्द बोलने में ही कितना अपनत्व लगता है। नारी जब तक माँ नहीं बनती तब तक वह अपने आप में पूर्ण नहीं होती । नारी के माँ बनने की कल्पनाओं मे भी कितना सुलभ अहसास होता है, जो केवल नारी ही जानती है। नारी के गर्भ में जब उसको बच्चे का पता लगता है तो वह अपने आप को उसी दिन से बच्चे के लिए निःस्वार्थ भाव से समर्पण कर देती है। उस हेतु स्वादिष्ट व्यंजन त्याग देती है और वही खाती है जिससे उसकी सेहत बनी रहे। 24 घण्टे उसी का ख्याल रखती है। अपने रक्त से उसको सिंचित करती है। जब बच्चा नौ माह बाद इस संसार में आता है तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और उसकी अलग ही दुनिया हो जाती है। उसको स्तनपान करवाती है, अगर कोई छोटी सी चोट भी लगती है तो उसे पहाड सी लगती है। किसी भी प्रकार की कोई आंच नहीं आने देती। यहाँ तक की बीमारी मे रात-रात जागती है। स्वयं गीले मे सोती है और उसे सुखे में सुलाती है, वो उसकी हर पसंद दृनापसंद को समझती है । माँ बच्चे की पहली पाठशाला होती है। इसलिए उसे धुरी कहा गया है। अर्थात प्रारम्भ में जो कुछ सीखना है , वह माँ के द्वारा ही सीखे और लालन पालन का भी उसी की जिम्मेदारी है अतः उसी की देखरेख व परिवार के सानिध्य मे भरण पोषण होता है और यही कारण माँ और संतान में अटूट रिश्ता झलकता था। किन्तु आज वह...................?
आज के परिपेक्ष्य में हम देखते हैं, जिस दिन डॉ. बताता है कि वो माँ बनने वाली है उसी दिन से नौ माह तक उस डॉक्टर को बच्चे को सुपुर्द कर देती है। जब वह जन्म लेता है तो खुशी मनाते हैं लोगो को इक्ठ्ठा कर लेते हैं , उपहार बांट देते हैं। कुछ माँ अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करातीं क्योंकि उससे फिगर बदल जाता है। दो वर्ष का इंतजार करते ही प्ले स्कूल में या बोर्डिंग स्कूल में डाल देते हैं। थोडा बड़ा हो जाता है तो उच्च शिक्षा के लिए दुर-दराज या विदेश में भेज देते हैं। क्या यह सब लक्षणों से कहीं से यह प्रतीत होता है कि परिवार में आत्मिकता बनती है। जिस बच्चे को कभी सीने से नहीं लगाया, वह बच्चा अन्त में क्या करेगा, परिवार में रह कर तो उसने कुछ सीखा नहीं । उसने तो पाश्चात्यकरण की शैली देखी और वैसा ही आचरण एवं व्यवहार करेगा।
माँ औरत का ऐसा किरदार है, जिसमें सम्पूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता,प्यार व सब कुछ निहित होता है। दुनिया का क्या को अन्य रिश्ता है , जिसमें इतनी सारी खूबियां एक साथ होती हों।किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-
लबों पर उसके कभी बदुआ नहीं होती। बस एक माँ ही जो कभीं खफा नहीं होती।।
घेर लेने को मुझे जब भी बलाँ आ गई। ढाल बन कर सामने माँ की दुआएं आ गई।।
ऊपर जिसका अन्त नहीं उसे आसमां कहते हैं। इस जहाँ में जिसका अन्त नहीं उसे माँ कहते हैं।।
माँ के सच्चे प्यार और परवरिश को किसी भी चीज से तौला नहीं जा सकता है। अतः माँ एवं पिता अपनी औलाद के लिए सब कुछ करने को आतुर रहते हैं, चाहे कभी-कभी वो गलत ही क्यों न हों । लेकिन विडम्बना देखो वह माँ जिससे हम कई जन्मों में भी उऋण नहीं हो सकते, जब बुढापे की लाठी बनना होता है, उसे हम अकेला छोड देते हैं। जिन्दगी में उनकी कमाई उनके मकान सब एक तरफ करके निकाल देते हैं, जैसे दूध में गिरी मक्खी को । कैसी विडम्बना है वो माँ जिसका क्या ओहदा रहा है और आज वह कहाँ पहुच गई है। यह तो हद ही है माँ के दूध को इतना लजाना। और उस माँ को भी देखों आज हजारों माँएं वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहीं हैं और आज उनसे पूछते हैं कि आप अपनी संतान के लिए क्या कहोगी तो भी कहती हैं भगवान उनको सुखी रखे। ऐसी होती है माँ।
आइये हम सब मिलकर इसके विरूद्ध खडे हों और ऐसा करने वालों को मानवता का पाठ पढाएं जिससे वे अच्छे संस्कारों में ढल सकें। जब उनमें प्रचीन काल से चली आ रही ऐसी पावन संस्कृति के पालनार्थ के प्रति मात्र वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि अपना उत्तरदायिदत्व समझेंगे तो समाज में अच्छी परम्परा कायम होगी और ऐसे माँ-बाप वृद्धाश्रम नहीं पहुंच पांयेंगे।
खुदा का दूसरा रूप है माँ,ममता की गहरी झील है माँ।
वो घर किसी जन्नत से कम नहीं, जिस घर मे खुदा की तरह पूजी जाती है माँ।।
जय विश्वकर्मा।
आर. पी. शर्मा (जांगिड)
आज के परिपेक्ष्य में हम देखते हैं, जिस दिन डॉ. बताता है कि वो माँ बनने वाली है उसी दिन से नौ माह तक उस डॉक्टर को बच्चे को सुपुर्द कर देती है। जब वह जन्म लेता है तो खुशी मनाते हैं लोगो को इक्ठ्ठा कर लेते हैं , उपहार बांट देते हैं। कुछ माँ अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करातीं क्योंकि उससे फिगर बदल जाता है। दो वर्ष का इंतजार करते ही प्ले स्कूल में या बोर्डिंग स्कूल में डाल देते हैं। थोडा बड़ा हो जाता है तो उच्च शिक्षा के लिए दुर-दराज या विदेश में भेज देते हैं। क्या यह सब लक्षणों से कहीं से यह प्रतीत होता है कि परिवार में आत्मिकता बनती है। जिस बच्चे को कभी सीने से नहीं लगाया, वह बच्चा अन्त में क्या करेगा, परिवार में रह कर तो उसने कुछ सीखा नहीं । उसने तो पाश्चात्यकरण की शैली देखी और वैसा ही आचरण एवं व्यवहार करेगा।
माँ औरत का ऐसा किरदार है, जिसमें सम्पूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता,प्यार व सब कुछ निहित होता है। दुनिया का क्या को अन्य रिश्ता है , जिसमें इतनी सारी खूबियां एक साथ होती हों।किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-
लबों पर उसके कभी बदुआ नहीं होती। बस एक माँ ही जो कभीं खफा नहीं होती।।
घेर लेने को मुझे जब भी बलाँ आ गई। ढाल बन कर सामने माँ की दुआएं आ गई।।
ऊपर जिसका अन्त नहीं उसे आसमां कहते हैं। इस जहाँ में जिसका अन्त नहीं उसे माँ कहते हैं।।
माँ के सच्चे प्यार और परवरिश को किसी भी चीज से तौला नहीं जा सकता है। अतः माँ एवं पिता अपनी औलाद के लिए सब कुछ करने को आतुर रहते हैं, चाहे कभी-कभी वो गलत ही क्यों न हों । लेकिन विडम्बना देखो वह माँ जिससे हम कई जन्मों में भी उऋण नहीं हो सकते, जब बुढापे की लाठी बनना होता है, उसे हम अकेला छोड देते हैं। जिन्दगी में उनकी कमाई उनके मकान सब एक तरफ करके निकाल देते हैं, जैसे दूध में गिरी मक्खी को । कैसी विडम्बना है वो माँ जिसका क्या ओहदा रहा है और आज वह कहाँ पहुच गई है। यह तो हद ही है माँ के दूध को इतना लजाना। और उस माँ को भी देखों आज हजारों माँएं वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहीं हैं और आज उनसे पूछते हैं कि आप अपनी संतान के लिए क्या कहोगी तो भी कहती हैं भगवान उनको सुखी रखे। ऐसी होती है माँ।
आइये हम सब मिलकर इसके विरूद्ध खडे हों और ऐसा करने वालों को मानवता का पाठ पढाएं जिससे वे अच्छे संस्कारों में ढल सकें। जब उनमें प्रचीन काल से चली आ रही ऐसी पावन संस्कृति के पालनार्थ के प्रति मात्र वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि अपना उत्तरदायिदत्व समझेंगे तो समाज में अच्छी परम्परा कायम होगी और ऐसे माँ-बाप वृद्धाश्रम नहीं पहुंच पांयेंगे।
खुदा का दूसरा रूप है माँ,ममता की गहरी झील है माँ।
वो घर किसी जन्नत से कम नहीं, जिस घर मे खुदा की तरह पूजी जाती है माँ।।
जय विश्वकर्मा।
आर. पी. शर्मा (जांगिड)
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