विश्वकर्मा समाज देश के
विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जाना व पहचाना जाता है। तीस उप जातियों व उप
नामों के कारण इतने बडे समाज को संगठित कर राजनैतिक स्तर पर पहचान बना कर सत्ता का
लाभ हासिल करने में कदम-कदम पर बाधाएं आ रही हैं। समाज के अगुआ कहे जाने वाले
महत्वकांक्षी नेताओं की संकुचित मानसिकता विश्वकर्मा समाज की एकता और उसके विकास
में सबसे बड़ी बाधा है।
आज
देश में विश्वकर्मा नाम के अतिरिक्त बढ़ई महासभा, लोहार महासभा, टांक महासभा,
धीमान महासभा, पांचाल महासभा और न जाने कितने अलग-अलग नामों से संगठन और सभाएं चल
रही है। और सभी का एक मात्र लक्ष्य विश्वकर्मा समाज का चहुमुखी विकास और सत्ता में
भागेदारी है। लेकिन बिखराव के कारण कोई भी राजनैतिक दल इतने विशाल समाज का
मूल्यांकन नहीं कर रहा है। नतीजन हमारा समाज विकास की दौड में पिछडे वर्ग की
अपेक्षाकृत कम जनसंख्या वाली जातियों से पीछे है।
इन्हीं
सब समस्याओं पर गंभीर चिन्तन और मनन के
बाद 9 जून 2002 को विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का सूत्रपात हुआ। समाज के तेजतर्रार
आई.ए.एस. अधिकारी रहे श्री जे.एन. विश्वकर्मा जी ने अपने प्रशासनिक सेवा काल में
समाज की दशा और दिशा को करीब से समझा और देखा। सामाजिक संगठनों के क्रिया कलाप और
सामाजिक नेताओं की कार्यपद्धति और उनकी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं का अध्ययन किया।
उन्होनें देखा कि विभिन्न नामों से चल रहे विश्वकर्मा समाज के संगठनों को एक कर
पाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव कार्य है।
इस
लिये श्री जे.एन. विश्वकर्मा ने समाज के ज्येष्ठ और श्रेष्ठ विद्वत जनों के साथ
मंत्रणा कर विश्वकर्मा एकीकरण अभियान शुरु किया। अभियान की 16 वीं वर्षगांठ पर 88000 ऋषियों की तपोभूमि एवं पौराणिक तीर्थ
स्थल नैमिषारण्य (सीतापुर) उ.प्र. में बहुत ही भव्य और दिव्य तरीके से मनाई गई।
जिसमें देश के विभिन्न भागों से आये विश्वकर्मा समाज के लोगों व स्वयं सेवकों ने
प्रतिभाग किया।
विश्वकर्मा
एकीकरण अभियान का लक्ष्य देश भर में विभिन्न नामों से चल रहे सामाजिक संगठनों
यथा-स्थिति में चलते हुए बिना किसी विलय के अपने लक्ष्य के प्राप्ति के लिए एकिकृत
करना है। सामाजिक एकता आन्तरिक और एकीकरण एक बाह्य प्रक्रिया है। हमारा लक्ष्य
विश्वकर्मा समाज को संख्या बल के अनुरूप सत्ता में भागेदारी सुनिश्चित कराना है।
जिसके लिये एकीकरण आवश्यक है। अभियान अपने
16 वर्षों की अनवरत यात्रा में उत्तर प्रदेश में ही नहीं सम्पूर्ण भारत में पहचान
बना चुका है। लेकिन अभी हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर पाने में सफल नही हो सके है।
जिसके लिये यह अभियान शुरू किया गया है। लेकिन देश भर में अभियान के तहत अब तक
आयोजित हो चुकी जन सभाओं और समाजिक गोष्ठियों में उमड़े जन समूह को देख कर
राजनैतिक दलों में यह सुगबुगाहट होने लगी कि अब विश्वकर्मा समाज को ज्यादा दिनों
तक उपेक्षित नही रखा जा सकता । परिणाम यह हुआ कि सपा, बसपा, कांग्रेस, भाजपा और
अन्य क्षेत्रीय दलों ने विश्वकर्मा समाज को राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाले
बन्धुओं को महत्व देना शुरू कर दिया। लेकिन जो लक्ष्य हमें प्राप्त करना है वह अभी
दूर है। इसके लिये निरन्तर सामाजिक सक्रियता की जरूरत है।
स्मरणीय
है कि विश्वकर्मा एकीकरण अभियान गैर राजनैतिक है लेकिन इसका लक्ष्य विभिन्न
माध्यमों से सत्ता में समाज की भागेदारी है। राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका
अदा करने वाले बंधुओं के लिए अभियान एक संजीवनी है।
विश्वकर्म
एकीकरण अभियान और उसके स्वयं सेवक किसी राजनैतिक दल के बंधुआ मजदूर नही अपितु
समाजके स्वैच्छिक कार्यकर्ता है। जो राजनैतिक दल हमारे समाज के नौजवान, युवा
साथियो और राजनैतिक क्षेत्र में का करने वालों क सत्ता मे भागेदारी सुनिश्चित
करेगा अभियान का स्वयं सेवक उसके लिये समर्पित रहेगें। विश्वकर्मा समाज की उपेक्षा
करने वालों का करारा सबक सिखाने में भी अभियान के स्वयं सेवक पीछे नहीं रहेंगे।
आज
जरूरत है प्रत्येक स्वजातीय सामाजिक संगठन से जडे सक्रिय कार्यकर्ताओं से बिना
अपनी पहचान गवाएं और अपने संगठन का अस्तित्व बनाये रखते हुए इस अभियान से स्वयं
सेवक के रूप में जुडने की। अभियान प्रत्येक परिवार से यह अपेक्षा करता है कि वह
अपने परिवार से एक सदस्य को इस अभियान से अवश्य जोडे। जिस दिन हम प्रत्येक
विधानसभा क्षेत्र में 250 सक्रिया स्वयं सेवकों की टीम तैयार करने में सफल हो
जायेंगे उस दिन कोई भी राजनैतिक दल विश्वकर्मा समाज की उपेक्षा और कोई भी असमाजिक
तत्व उत्पीडन का साहस नहीं जुटा सकेगा।
तो
आइये आज हम संकल्प लें कि अपने परिवार के एक सदस्य को इस अभियान से अवश्य जोडेंगे।
क्योंकि अभियान के माध्यम से ही हम राजनीतिक सत्त में भागेदारी हासिल कर सकते है।
जो हमारा लक्ष्य है।
“हमारी मंजिल है एकीकरण और
हमारा लक्ष्य है सत्ता में भागेदारी”