Tuesday, April 3, 2018

साहस सफलता की कसौटी है-दीपचंद सुथार

दीपचंद सुथार
जोधपुर, मो- 9530051273
व्यक्ति एक चिंतनशील प्राणी है। वह समाज में रहते हुए अपने कार्य में सदैव व्यस्त रहता है, कुछ-न-कुछ सोचता रहता है। वह क्या सोचता है ? यह उसका व्यक्तिगत सवाल है। परन्तु मन बहुत ही चंचल है। यह एक पल भी विश्राम नहीं करता है। यदि यह सोच अपने जीवन को ऊँचा उठाने की प्रक्रिया से जुड़ा है तो प्रसन्नता की बात है। क्योंकि सही सोच ही सफलता की श्रेष्ठ कुंजी है। इस राह में कई बार रूकावटें आती रहतीं हैं। यदि वह इनसे घबरा जाता है तो उसका विकास वहीं रूक जाता है, लेकिन जो व्यक्ति इन बाधाओं का हिम्मत के साथ सामना करता है वह मंजिल तक पहुंच जाता है। संसार में जीतने भी महापुरूष, वैज्ञानिक,आविष्कारक, शूरवीर, खोजक, देशभक्त इत्यादि हुए हैं, उनका व्यक्तित्व व कृतित्व हमारे लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। अतः अनुगामी बनकर सीखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी जिज्ञासा ही हमारे सोच को सही दिशा की ओर ले जाने की क्षमता रखती है। वैसे देखा जाए तो सुख-दुःख हमारे जीवन का पेण्डुलम है। परन्तु यथार्थ सीख राह की कठिनाइयां ही देती हैं। इसी को लक्षित करते हुए किसी कवि ने उचित ही कहा है-
अगर कांटों से गुजरना ना होता, तो जीवन का आभास न होता।
मंजिल, मंजिल  ही रह जाती, मानव का इतिहास न होता।।
यथार्थ में इतिहास व्यक्ति की श्रम बूंदों से ही लिखा जाता है। ये ही उसकी अन्तस निहित साहस का सुमधुर संगीत है। जो इंद्र धनुष की तरह उसकी प्रतिमा के रंगों को बिखेर कर सभी को अपनी ओर आकृष्ट कर देता है। अतः इससे कभी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि दृढता के साथ सामना करना चाहिए। इसी को इंगित करते हुए मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन ने उचित ही लिखा है-
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभीं हार नही होती।
अतः स्पष्ट है कि हम बाधाओं को चुनौती देकर अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। किसी विद्वान ने कहा है कि-  वह व्यक्ति प्रशंसा के योग्य है जो हालात को मुँह तोड जवाब देता है। इसी को लक्षित करते हुए कवि ने अपने साहसी उद्गारों को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है-
जो जहाज को डुबो दे , उसे तुफान कहते हैं। जो तुफान से टक्कर ले, उसे इंसान कहते हैं।।
प्रगतिशील व्यक्ति ऐसे ही विचारों के धनी होते हैं, जो पथ में आने वाली मुसीबतों का साहस, धैर्यता, कर्मष्ठता और संकल्प के साथ सामना करते निर्भय होकर निरन्तर बढ़ते रहते हैं। वे ही अभीष्ट को अर्जीत करते हैं। इस संदर्भ में भी किसी कवि ने अपने बेमिसाल शब्दों में ठीक ही कहा है कि-
जिन्दगी काँटों भरा सफर है, हौसले इसकी पहचान हैं। 
रास्तों पर चलते सभी है, जो रास्ता बनाए वह महान है।।
अतएव साहस ही हमारे जीवन का मुख्य आधार है। इसके बिना जीवन नीरस प्रतीत होता है। राजिया के शब्दों में भी कितनी यथार्थता झलकती है देखो-
हिम्मत कीमत होये, बिन हिम्मत कीमत नहीं। करे न आदर कोय, रह कागद ज्यूं राजिया।।
हिम्मत में अद्भूत शक्ति छिपी होती है। भाषा सार संग्रह दूसरा भाग पृष्ठ 62 से ज्ञात होता है कि- मोली नामक एक स्पेन देश का मुखिया किसी समय पीडित अवस्था में अपनी शय्या पर पड़ा था और उसकी सेना पुर्तगाल वालों से लड रही थी, जब उसने सुना की मेरी सेना हार रही है, तब उससे न रहा गया  और व्याकुल हो उसी अवस्था में साहस कर वह शय्या से कूद पड़ा और पुरूषार्थ के बल से दौड़ाता हुआ रणभूमि में आकर शत्रुओं से लडने और अपनी सेना के वीरों को ललकारने लगा। इस पीडित व्यक्ति को लडते देख उसके वीरों में ऐसा साहस और पुरूषार्थ उमड़ा और वे शत्रुओं से ऐसा जी खोलकर लड़े कि बैरियों के छक्के छूट गए और उनसे भागते ही बन पड़ा। उस लड़ाई के पीछे मोली मोलिक घर पर आया और अपनी शय्या पर लेटते ही मर गया।
इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि साहस में कितनी शक्ति है समाहित है ? ऐसी कई घटनाएं पढने को मिलती हैं , जो हमारे भीतर सोयी शक्ति को जागृत कर हार को जीत में बदल देती हैं। इस शक्ति को पहचानने का प्रयास करना चाहिए और मुसीबतों से कभी घबराना नहीं चाहिए। क्योंकि साहस सफलता की कसौटी है। तभी तो पुरूषार्थी कहते है-
आँधियों से कह दो जरा औकात में रहें। हम परों से नहीं , हौसलों से उड़ा करते हैं।।
अतः हौंसलों से उड़ान भरने बाले ही अपने जीवन को सार्थक बना अतीत के आंगन में रोशनी फैला सकते हैं । तभीं तो स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- पीछे मत देखों , आगे देखो। अनंत उत्साह,अनंत साहस और अनंत धैर्य के सहारे ही महान कार्य किए जा सकते हैं।


Monday, April 2, 2018

माँ-आर. पी. शर्मा (जांगिड)

हमारा देश यहाँ की पावन संस्कृति की दृष्टि से अन्य सभी देशों से अलग पहचान रखता है। यहाँ संस्कृति और श्रेष्ठ परंपराओं की दुहाई दी जाती रही है। भारत ऐसा देश है, जिसको भारत माँ अर्थात् मातृभूमि के रूप मे मानते हैं, क्योंकि प्राचीन काल से जन्मस्थली भी यही रही है और कर्म स्थली भी यही रही है। हमारे देश के शास्त्रों में, पुराणों, ग्रंथों आदि में माँ शब्द का इतना महत्व बताया गया है, जिसकी सम्पूर्ण व्याख्या करना इतना आसान नहीं है। माँ दुर्गा, माँ शारदे, माँ लक्ष्मी, माँ गंगा और न जाने कितनी  ही दैवीय शक्तीयों का माँ के रूप में इस धरती पर अवतरण हुआ। युगों-युगों से इनका आश्रय मिला। इनकी सद्वाणीयों , लीलाओं से प्रशस्त मार्ग का दर्शन मिला। माँ ममता की मूरत, माँ शब्द  को सुनने से ही विशेष अनुभूति , माँ शब्द बोलने में ही कितना अपनत्व लगता है। नारी जब तक माँ नहीं बनती तब तक वह अपने आप में पूर्ण नहीं होती । नारी के माँ बनने की कल्पनाओं मे भी कितना सुलभ अहसास होता है, जो केवल नारी ही जानती है। नारी के गर्भ में जब उसको बच्चे का पता लगता है तो वह अपने आप को उसी दिन से बच्चे के लिए निःस्वार्थ भाव से समर्पण कर देती है। उस हेतु स्वादिष्ट व्यंजन त्याग देती है और वही खाती है जिससे उसकी सेहत बनी रहे। 24 घण्टे उसी का ख्याल रखती है। अपने रक्त से उसको सिंचित करती है। जब बच्चा नौ माह बाद इस संसार में आता है तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और उसकी अलग ही दुनिया हो जाती है। उसको स्तनपान करवाती है, अगर कोई छोटी सी चोट भी लगती है तो उसे पहाड सी लगती है। किसी भी प्रकार की कोई आंच नहीं आने देती। यहाँ तक  की बीमारी मे रात-रात जागती है। स्वयं गीले मे सोती है और उसे सुखे में सुलाती है, वो उसकी हर पसंद दृनापसंद को समझती है । माँ बच्चे की पहली पाठशाला होती है। इसलिए उसे धुरी कहा गया है। अर्थात प्रारम्भ में जो कुछ सीखना है , वह माँ के द्वारा ही सीखे और लालन पालन का भी उसी की जिम्मेदारी है अतः उसी की देखरेख व परिवार के सानिध्य मे भरण पोषण होता है और यही कारण माँ और संतान में अटूट रिश्ता झलकता था। किन्तु आज वह...................?
आज के परिपेक्ष्य में हम देखते हैं, जिस दिन डॉ. बताता है कि वो माँ बनने वाली है उसी दिन से नौ माह तक उस डॉक्टर को बच्चे को सुपुर्द कर देती है। जब वह जन्म लेता है तो खुशी मनाते हैं लोगो  को इक्ठ्ठा कर लेते हैं , उपहार बांट देते हैं। कुछ माँ अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करातीं क्योंकि उससे फिगर बदल जाता है। दो वर्ष का इंतजार करते ही प्ले स्कूल में या बोर्डिंग स्कूल में डाल देते हैं। थोडा बड़ा हो जाता है तो उच्च शिक्षा के लिए दुर-दराज या विदेश में भेज देते हैं। क्या यह सब लक्षणों से कहीं से यह प्रतीत होता है कि परिवार में आत्मिकता बनती है। जिस बच्चे को कभी सीने से नहीं लगाया, वह बच्चा अन्त में क्या करेगा, परिवार में रह कर तो उसने कुछ सीखा नहीं । उसने तो पाश्चात्यकरण की शैली देखी और वैसा ही आचरण एवं व्यवहार करेगा।
माँ औरत का ऐसा किरदार है, जिसमें सम्पूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता,प्यार व सब कुछ निहित होता है। दुनिया का क्या को अन्य रिश्ता है , जिसमें इतनी सारी खूबियां एक साथ होती हों।किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-
लबों पर उसके कभी बदुआ नहीं होती। बस एक माँ ही जो कभीं खफा नहीं होती।।
घेर लेने को मुझे जब भी बलाँ आ गई। ढाल बन कर सामने माँ की दुआएं आ गई।।
ऊपर जिसका अन्त नहीं उसे आसमां कहते हैं। इस जहाँ में जिसका अन्त नहीं उसे माँ कहते हैं।।
माँ के सच्चे प्यार और परवरिश को किसी भी चीज से तौला नहीं जा सकता है। अतः माँ एवं पिता अपनी औलाद के लिए सब कुछ करने को आतुर रहते हैं, चाहे कभी-कभी वो गलत ही क्यों न हों । लेकिन विडम्बना देखो वह माँ जिससे हम कई जन्मों में भी उऋण नहीं हो सकते, जब बुढापे की लाठी बनना होता है, उसे हम अकेला छोड देते हैं। जिन्दगी में उनकी कमाई उनके मकान सब एक तरफ करके निकाल देते हैं, जैसे दूध में गिरी मक्खी को । कैसी विडम्बना है वो माँ जिसका क्या ओहदा रहा है और आज वह कहाँ पहुच गई है। यह तो हद ही है माँ के दूध को इतना लजाना। और उस माँ को भी देखों आज हजारों माँएं वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहीं हैं और आज उनसे पूछते हैं कि आप अपनी संतान के लिए क्या कहोगी तो भी कहती हैं भगवान उनको सुखी रखे। ऐसी होती है माँ।
आइये हम सब मिलकर इसके विरूद्ध खडे हों और ऐसा करने वालों को मानवता का पाठ पढाएं जिससे वे अच्छे संस्कारों में ढल सकें। जब उनमें प्रचीन काल से चली आ रही ऐसी पावन संस्कृति के पालनार्थ के प्रति मात्र वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि अपना उत्तरदायिदत्व समझेंगे तो समाज में अच्छी परम्परा कायम होगी और ऐसे माँ-बाप वृद्धाश्रम नहीं पहुंच पांयेंगे।
खुदा का दूसरा रूप है माँ,ममता की गहरी झील है माँ।
वो घर किसी जन्नत से कम नहीं, जिस घर मे खुदा की तरह पूजी जाती है माँ।।
जय विश्वकर्मा।
आर. पी. शर्मा (जांगिड)