विश्वकर्मा एकीकरण अभियान एक नव-जागरण है। एक नई सोच है, एक नई दिशा है और एक नई विचार धारा है। पहले से ही हजारों संगठनों में विभक्त विश्वकर्मा समाज के लिए एकीकरण अभियान पथ-प्रदर्शक है। यह अभियान युवाओं में नव चेतना एवं स्फर्ति का प्रदायक है, समाज को सत्ता में संख्यानुपातिक भागीदारी दिलाने का प्रयोजक है। विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का सिद्धांत प्रत्येक परिवार से एक-एक स्वयं सेवकों को संगठित शक्ति पर आधारित है इसलिए विश्वकर्मा समाज का वह व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो इस एकीकरण अभियान से जुड सकता है। यह एकीकरण अभियान न तो कोई समिति है, न कोई राजनीतिक दल है बल्कि यह एक मिशन है जो राजनीतिक होते हुए भी पूर्णतया अराजनीतिक है किन्तु इसका साध्य है विभिन्न माध्यमों द्वारा हमारे समाज की सत्ता में भागेदारी। सत्ता में भागेदारी वह कुंजी है जो किसी जातिध्विशेष वर्ग के विकास का द्वार खोलती है। अधिकांशतरू लोग विश्वकर्मा को हेय-दृष्टि से देखने की कोशिश करते हैं जवकि सच्चाई यह है कि विश्वकर्मा ब्रह्म है। शाश्वत शब्द है। यदि मूल को लोग भूल जाये तो फिर बचेगा ही क्या हम यह क्यों भूल जाते है कि जिसके कर्म से ही यह विश्व पैदा हुआ वही विश्वकर्मा है। अब स्थिति यह हो चुकी कि जो हमारा है वह दूसरों का हो गया है। अब कानून बदलने का साधन कहां से मिले इसके लिए तो वोट चाहिए और वोट की राजनीति में संतुलन विगाडने की क्षमता हमने पैदा नही की। वर्तमान में जो वोट की राजनीति में संतुलन विगाड सकते हैं उन्हें ही सत्ता की भागीदारी हासिल हो पाती है। वास्तव में इस मिशन के द्वारा समाज से स्वंय सेवकों का एक उत्कृष्ट कैडर तैयार करना ही इस अभियान की बुनियाद है इसी बुनियाद है इस बुनियाद पर एकीकरण का ढांचा पूरे हिन्दुस्तान में तैयार किया जा रहा है। स्वयं-सेवकों के दो सशक्त समूह जिसमें अभियान प्रचारकों और अभियान प्रेरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यही इस अभियान की धुरी होंगे, इसी धुरी पर एकीकरण का स्वरूप परिलक्षित हो रहा है जो विश्वकर्मा समाज को सत्ता की दहलीज तक ले जायेगा, यही इस अभियान का मिशन है और इस मिशन का प्रतीक है V5जो दो चक्रों के भीतर प्रकाशमान है। यह दो चक्र इस अभियान के दो चरण (सोपान) है। प्रथम चरण V5 है अथवा विश्वकर्मा एकीकरण है । द्वितीय चरण विश्वकर्मा विजयतेतराम् अथवा सत्ता में भागेदारी। इस प्रतीक V5 में विश्वकर्मा के पांचो पुत्रों मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ के शिल्प का सन्निहित है और इस प्रतीक V5 के आलोक में समाज अपने तिरोहित गौरव का दर्शन कर सकेगा ऐसी संकल्पना का प्रतीक V5 है जो दो चक्रों के भीतर विराजमान है। बडे चक्र के ऊपरी भाग में विश्वकर्मा एकीकरण अभियान अंकित है और इसी चक्र के अधोभाग में विश्वकर्मा विजयतेतराम् का जय घोष रूपायित है। छोटे चक्र के भीतरी भाग में अंग्रेजी का अक्षर Vके साथ 5 का अंक सम्मृक्त है (एकीकृत) हैं। इस प्रकार यह प्रतीक V5विजयपथ (विजयतेतराम) पर बढ चलने का संदेश देता है। प्रतीक V5 का स्वरूप भौतिकता के साथ-साथ आध्यात्मिक संस्पर्श से अनुप्रमाणित है, इसलिए V-5 के आधि-भौतिक और आध्यात्मिक दो अर्थ किए गए हैं।
सृष्टि की रचना में पांच के अंक का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि विश्वकर्मा ने ही पांच महाभूतों से पंचीकरण कर के सृष्टि का शिल्पन किया है और शिल्प की अर्थवत्ता व सत्ता को इस दुनिया में स्थापित किया है। इसलिए शिल्पकर्म को यज्ञकर्म के रूप में निरूपित किया गया है। शिल्प कर्म के प्रत्येक सिद्धांत प्रथमतः विश्वकर्मा के माध्यम से उद्भूत होते हैं। शिल्पाधिपति के रूप में जिस विश्वकर्मा की सत्ता को स्वीकार किया गया है, वह पंचमुखी है। प्रथम सद्योजात पूर्व दिशा में, द्वितीय मुख वामदेव दक्षिण दिशा में , तृतीय मुख अघोर पश्चिम दिशा में , चतुर्थ मुख तत्पुरूष उत्तर दिशा में और पंचम मुख ईशान उर्ध्वस्थ ऊपर की ओर स्थित बताए गए हैं। इन पांच मुखों से पांच शैव पांचाल ब्राह्मण क्रमशः मनु, मय,त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ उत्पन्न हुए। इन पंच-ऋषियों से पांच शिल्प लौह, काष्ठ, ताम्र, पाषाण और स्वर्ण उद्भूत हुए। इस प्रकार पांच विश्वकर्मा पुत्र पंच शिल्प के उद्भावक पिता कहे गये हैं। इन पांच शिल्पों के माध्यम से इस संसार को अलंकृत या विभूषित करने के कारण इन्हें पांचाल कहा जाता है- पंच्चाभिः शिल्पैः अलान्ति भूषयन्ति जगत इति पांच्चालाः। विश्वकर्मा के इन्हीं पांच पुत्रों में मनु से लौहकार, मय से काष्ठकार, त्वष्टा से ताम्रकार, शिल्पी से शिल्पकार और दैवज्ञ से स्वर्णकार वंश प्रवर्धमान हुए। जन्मदिक के अनुकूल मनु ने लौह शिल्प यज्ञशाला देश के पूर्व भाग में, मय ने काष्ठ शिल्प यज्ञशाला देश के दक्षिण दिशा में, त्वष्टा ने ताम्र शिल्प यज्ञशाला देश के पश्चिम दिशा में, शिल्पी ने पाषाण शिल्प यज्ञशाला देश के उत्तरी दिशा में और दैवज्ञ नै स्वर्ण शिल्प यज्ञशाला देश के मध्य भाग में स्थापित की। इस योजनाबद्ध रीति से समाज के विकास एवं निर्माण से संबंधित पांचों शिल्पयज्ञ शालायें देश के प्रत्येक दिशाओं में पृथक-पृथक स्थापित कर राष्ट्र और समाज को एकता के सूत्र में बांधने का अनूठा उदाहरण विश्वकर्मा ने प्रस्तुत किया है। इसलिए इस उदाहरण को आत्मसात करते हुए V5 को विश्वकर्मा एकीकरण के प्रतीक चिन्ह के रूप में अंगीकृत किया गया है। इस प्रकार विश्वकर्मा के पांच मुख, पांच दिशाऐ, पांच पुत्र , पांच वंश और शिल्प का उद्बोधक है- विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का प्रतीक V5
विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का प्रतीक V5 भौतिकता के साथ-साथ इसका आध्यात्मिक पक्ष अत्यंत रोचक और श्लाघनीय है। विश्वकर्मा ऋग्वैदिकण युग का सर्वोच्च दैवीशक्ति का प्रतिनिधि है। ऋग्वेद के 10 वें मण्डल के सूक्त 81 व 82 में विश्वकर्मा ही इस सृष्टि का निर्माता देव है। शुक्ल यजुर्वेद अथवा वाजसनेजी संहिता के अध्याय 26 के 9 वें मंत्र के अनुसार विश्वकर्मा समस्त संसार तथा ब्रह्माण्डों का उत्पादक पिता कहा गया है- त्वष्टेदं विश्वम् भुवनम् जजान् । विश्वकर्मा को पूरे संसार एवं ब्रह्माण्डों का पिता इसलिए कहा गया है क्योंकि विश्वकर्मा ने ही विश्व के प्राणियों की रचना के लिए सर्वप्रथम निर्माण सामग्री का सृजन किया है और यही पांच निर्माण सामग्री पंच-महाभूत है अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नी और आकाश है। यही पांच तत्व जगत की रचना के आधार हैं।
शिल्पाधिपति विश्वकर्मा के पांच मुखों को पंच ब्रह्म की संज्ञा दी गई है, ऐसा उल्लेख पद्मपुराण के कपिलगीता के अध्याय 3 के सूक्ति 25 पर उल्लेख है-
प्रथमं वतारकाकारं द्वितीय दण्डमुच्यते, तृतीय कुण्डलाकारं चतुर्थचन्द्रकम् ।
पंचम बिन्दु संयुक्तं, प्रणवे ब्रह्म पंचकम।।
ये पांच ब्रह्म है। प्रथम तारकाकार ब्रह्म, द्वितीय दण्डाकार, ब्रह्म, तृतीय कुण्डलाकार ब्रह्म, चतुर्थ अर्धचन्द्राकार ब्रह्म और पांचवा बिन्दु रूप ब्रह्म। इन्ही पांच ब्रह्म आकारों से प्रवणक्षर अर्थात ओइम बनता है और यही ऊँ से समस्त भूत जिससे पैदा होते है, जन्मपाकर जिसके कारण जीवित रहते हैं और नष्ट होते ही जिसमें प्रविष्ट हो जाते है, वही जिज्ञासा योग्य है और वही ऊँ परब्रह्म विश्वकर्मा का प्रतीक है। विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का प्रतीक ट5 , ऊँ का लौकिक स्वरूप है जिससे पांचों शिल्पों के उद्भावकों के वंशजों का एकीकरण गुफित स्वरूप में प्रकाशित है। यह पांच शिल्प- लौह, लकडी, तांबा, पत्थर और सोना है जो पंच महाभूत क्रमशः पृथ्वी, जल, तेज (आग्नि), और आकाश के रूपक है। यही मानव शरीर की रचना के सहायक तत्व है। इस प्रकार वैदिक युग से लेकर आज तक विश्वकर्मा की उपयोगिता समाज के सभी क्षेत्रों में इतनी बढी कि विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं निर्माणात्मक व्यवस्थओं में उसकी अनिवार्यता स्थापित हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विश्वकर्मा कोई जाति नहीं है। यह एक वर्ग है। विश्वकर्मा का संबंध किसी जाति विशेष से न होकर शिल्प के समग्र परिवेश से है। इसीलिए विभिन्न रूपों में शिल्प, उद्योग, प्रौद्योगिकी तथा कृषि आदि सभी कार्यों से जुडे वर्ग के लोग विश्वकर्मा है।
विश्वकर्मा से शिल्प की संज्ञा प्रादुर्भाव हुआ और विश्वकर्मा शिल्प का पर्याय बन गया । विश्वकर्मा देव तत्व है इसलिए उसके शिल्प में सौंदर्य है, पवित्रता है जीवन की स्थिरता, सुख और शांति है। विश्वकर्मा ब्रह्मा, तेज और ज्ञान के प्रतिनिधि है जो किसी भी समाज की व्यवस्था तथा उसकी गतिशिलता के लिए आवश्यक है। इसी उदान्त उद्देश्य की अभिव्यक्ति है विश्वकर्मा एकीकरण अभियान का प्रतीक V5 ।
परन्तु आज भी विश्वकर्मा का देव तत्व स्वरूप तमाम प्रयासों के बाद भी पराभूत नहीं हो सका क्योंकि आज की सामाजिक सरंचना में शिल्पकर्म का सम्मान नहीं है इसलिए शिल्पी वर्ग अनादर के पात्र बन गये है चूकि आज की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में उन्हीं लोगों की पूछं है जो संगठित है, एक स्थान पर केन्द्रित है और जो वोट की राजनीति में सत्ता का संतुलन बिगाड सकते हैं, इसलिए विश्वकर्मा के पांचों शिल्पी-वर्गों को एकीकृत करके सत्ता में भागीदारी के माध्यम से उनका वह पुराना गौरव पुनः दिलाना ही इस एकीकरण अभियान का उद्देश्य है जहां उन्हें राजत्व प्राप्त था।
आज विजयी वह वर्ग है जिसे राजत्व प्राप्त है और यह राजत्व की स्थिति हमारे समाज को तभी सम्भव है जब हम अपने समाज के पांच बाधक तत्वों यानी अहं, स्वार्थ, ईर्ष्या, आत्म विश्वास और मतभेद पर विजय प्राप्त कर लेगें तभी सत्ता में संख्यानुपातिक भागी।दारी का मार्ग प्रशस्त होगा इसलिए अभियान का नारा है- विश्वकर्मा विजयतेतराम् यानी सत्ता में भागेदारी जो हमारी महत्वकांक्षा का द्योतक है और अभियान का प्रतीक V5 जो विश्वकर्मा एकीकरण का द्योतक है। यही प्रतीक V5 विश्वकर्मा समाज का भविष्य है अतः हमारी मंजिल है और विश्वकर्मा विजयतेतराम् हमारी महत्वकांक्षा है।
राम नरेश शर्मा
लखनऊ